My photo
Freelance Journalist, Mechanical Engineer, Writer, Poet, Thinker, Creator of Naya Hindustan (Youtube)

Saturday 27 August 2016

" बारिशों की धड़कनें,हवाओं की गुंजन,पेड़ों की चिहाड़ सुनी है मैंने "

बारिशों की धड़कनें,हवाओं की गुंजन,पेड़ों की चिहाड़ सुनी है मैंने |
जब तीनो एक साथ चलती हैं तो दरिया भी अपना काबू खो देते हैं |
ज़िन्दगियों को ढ़ोलते हुए बस्तियों में रो लेते हैं |
लेकिन ये दरिया की उदासी किस बात की है ?
खुद के पूरा हो जाने की या बादलों के दूर जाने की |
जिनका ज़रिया दरिया होता है वो अब भी लहरों पर चलकर जाते हैं |
हँसते हैं, गुदगुदाते हैं और सहमे हुए दोस्त को बहलाते,फुसलाते,सहलाते हैं |
मगर सहमी तो दुनिया भी है |
दरिया के छिदे हुए मर्मों से,
या खुद ही के कर्मों से !
खुद को इत्मिनान से रखो,मुस्कराहट में भी एहतियात बरतो |
वो दरिया हे वो अपने आप में ही धुनी है
बारिशों की धड़कनें, हवाओं की गुंजन,पेड़ों की चिहाड़ मैंने सुनी है |

3 comments:

  1. Aaj subah ki girti boondo ke saath,
    M bhi utha tha man me liye ek nayi aas,
    Pr jb khola darwaja to khada tha PULKIT apne muskurate hue chehre ke saath,
    Hmne bola suprabhat is khhilte huye mausam ke saath,
    Bs aaj aise hi hui mere din ki suruaat....

    ReplyDelete