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Tuesday 22 August 2017

"खुद का अक्स मिल जाएगा"

खुद का अक्स मिल जाएगा।
मन का मेल जब धुल जाएगा।
जब चित्त के भीतर से भोग हटेगा।
बुद्धि पटल पर योग जागेगा।
जब रंचमात्र न मोह रहेगा।
लोभ का बाँट ना सतह पर डंटेगा।
जब तपस्वी की भाँति चेष्ठा होगी।
समर्पण की महत्तम पराकाष्ठा होगी।
ऐबों पर जब रौब रहेगा।
वेदों सा सहज शोध रहेगा।
मन के अंधियारे कुंठित होंगे।
विचारों के अंकुर प्रस्फुटित होंगे।
लक्ष्य-प्रदर्शनी ज्योति जलेगी।
कदमताल उस पथ पर बजेगी।
आनंद की नवल भौर उठेगी।
रौशनी काय से हर और बिछेगी।
दिव्यानुभूति हो जाएगी।
प्रकृति जीवंत हो जाएगी।
कतरा-कतरा खिल जाएगा।
खुद का अक्स तब मिल जाएगा।
मन का मेल जब धुल जाएगा।