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Freelance Journalist, Mechanical Engineer, Writer, Poet, Thinker, Creator of Naya Hindustan (Youtube)

Monday 15 August 2016

A Special Questionnaire Poem On 70th Independence Day By Me

एक पंछी का उनमुक्त गगन में क्रीड़ा करना हे आज़ादी |
हवाओं का बेवक़्त खुदबख़ुद रुख़ मोड़ लेना हे आज़ादी |
क्या कल में रहते आज में, हम आज में आज़ाद हैं ?
यदि तृष्णा,आनंद का अतिव्यापन है, तो क्या हम आबाद हैं ?
खादी से ज्यादा घर में अंग्रेजी पौशकें आती हैं |
स्वदेशी से ज्यादा अब हमको पाश्चात्य सभ्यता भाती है |
आदर्श नही अब बेतरतीब जँचते हमारे कैश हैं |
सत्तर साल हुए आज़ादी के, फिर भी आपस में द्वेष है |
हम नही, स्मार्ट हमारे चल (सेल्यूलर) हैं |
कल में उठते कल में चलते, आज में हमारे हलचल है |
व्यापकता से मुँह मोड़कर खुले विचार हो लिए |
बुद्धि को कुंठित करवाकर खुद ही पर क्षुब्ध हो रो लिए |
पुलकित, अंग्रेजी परदे से ऊपर उठने की ज़रूरत है |
इरादे हमारे दृढ़ हैं किंतु इशारों में भी क्या हरकत है |
महसूस करो स्वदेशी दर्पण |
उसका सिक्का उसको अर्पण |
फिर देखो किस तरह प्रस्फुटित होते ज़ज़्बात हैं |
खुद के अस्तित्व का बोध होना सबसे मीठा स्वाद है |
क्या कल में रहते आज में , हम आज में आज़ाद हैं ?
यदि तृष्णा आनंद का अतिव्यापन हे तो क्या हम आबाद हैं ?
क्या कल में रहते आज में, हम आज में आज़ाद हैं ?

2 comments:

  1. Shaandar Pulkit, mujhe vishwas nhi hota ki tumhare pas is level ki hindi likhne ki bhi kshamta h, Kavita ki ek line to mere dil me ander tk ghar kar gai h!!"Hm nhi, smart to chal 'cellular' h"
    Thanx bahut dino bad ek achhi aur sarthak kavita padne ko mili!! Keep it up!! May God bless u!!

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  2. Thank you very much sir. It's a privilege and honor to have this kind remark from you.

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