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Thursday, 2 March 2017

'बेमौसम बरसात'

                      'बेमौसम बरसात'
चाय की थड़ी पर चलते चलते यूँ नज़र पड़ी।
टिमटिमाते गिलासों और मटरी पर नियत अड़ी।
हवा का वेग तेज़ था।
घटाओं में आवेश था।
बादलों कि ओर मुख किया ।
चाय के लिए रूख किया।
पानी की बूंदे पड़ने लगी ।
चिंताएं कपाल में बढ़ने लगीं।
कोने में एक टूटा छप्पर था।
अब वो मेरे सिर के ऊपर था।
आसमान में बिजली चमकी।
नज़दीक किसी की चूड़ी खनकी।
पलटी नज़र तो उसको पाया।
समय ने अद्भुत रास रचाया।
कुछ क्षण यूँहिं एक-दूजे को तकते रहे।
फिर जज़्बातों-बातों में कुछ लम्हों के लिए हँसते रहे।
चाय का एक-एक कप लिए हुई पहली मुलाकात।
बादल गरज़े,बिजलियाँ कौंधी शुरू हुई बेमौसम बरसात।
आखिर शुरू हुई बेमौसम बरसात।

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