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Sunday, 19 March 2017

"तेरा और मेरा किस्सा"

तेरा और मेरा किस्सा ।
जैसे आसमान की नीलम में एक तारा खोजता अपना हिस्सा।
वो आसमान जो झेलम के होठों से हिन्द के ओट तक फैला है।
वो आसमान जो सूरज को मानता और चाँद को भी जानता है।
पर तारों से शायद उसका बैर है।
नहीं ! तो फिर तारों के लिए ही क्यों अंधेर है?
आज ध्रुव की जगह सप्तऋषि ने ली जबकी कल वो चाँद से नज़दीकियां बढ़ाने का तुक तर्क में जमाये हुए था।
हर एक तारा दूजे से मानो शालीन स्वर में कह रहा हो , "वत्स, कल तक जो तेरा था, आज वो मेरा है, कल किसी और का होगा।"
आसमान के नीले प्लॉट पर आरक्षण सिर्फ सूरज और चाँद को है।
क्योंकि सूरज सुबह की सुगंध को उठता है तो चाँद साँझ की बयार को बुलाता है।
सूरज समय के अक्स को पूरे दिन तपाता है
तो चाँद ख़ामोशी के पहरों में दिलों की धड़कनें बढ़ाता है।
आरक्षण है तो वो काम के नाम पर।
न जात पात पर,ना किसी दाम पर।
किंतु तारे भी तो आसमान को चमकाते हैं।
चाँद को घेर लेते हैं और फिर बहकाते हैं।
जिसकी वजह से चाँद बहकता हुआ पूरे आसमान में मटकता है।
और इन सब से बेचैन होकर सूरज भोर के बाद पटल पर अपनी सांसे पटकता है।
मगर तारों के लिए कोई सहानुभूति नहीं है।
वो चाहें तो रूठ जायें।
या फिर टूट जायें।
किसको पता?
एक मामूली तारा,बेचारा, क्या पा सकेगा अपना हिस्सा ?
क्या होगी उसकी दास्तां,पूरा होगा उसका किस्सा?
जैसे आसमान की नीलम में एक तारा खोजता अपना हिस्सा।
बस कुछ ऐसा ही है तेरा और मेरा किस्सा।


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