A Crazy Philosopher

- Pulkit Upadhyay
- Freelance Journalist, Mechanical Engineer, Writer, Poet, Thinker, Creator of Naya Hindustan (Youtube)
Monday, 3 February 2025
शीर्षक: निद्रा की खोज
Friday, 1 November 2024
एक दीया...
एक दीया उस राम के नाम जो व्याप्त है कण-कण में,
जो विद्यमान है हर क्षण में,
जो बैठा है हर रण में,
जो बसता है हमारे अंतःकरण में
एक दीया उस राम के नाम।
एक दीया उस लक्ष्मण के लिए जिसने त्याग दिया राजभवन को,
आनंद विलास और राज धन को,
जो भ्राता संग भटकता रहा सघन वन को,
जिसने मजबूत किया राम के मन को,
एक दीया उस लक्ष्मण के लिए।
एक दीया उस सीता को अर्पित जो आदर्श और समर्पण की मूरत है,
जो हर संघर्ष में सहजता की सूरत है,
जो मर्यादा पुरूषोत्तम के जीवन की जरूरत है,
जो मां है, जननी है, कुदरत है,
एक दीया उस सीता को अर्पित।
एक दीया उस हनुमान की स्तुति में
जो चंचल है, स्वामिभक्त है,
जो पुष्प सा कोमल है, पर्वत सा सख्त है,
जो सर्वशक्तिशाली है, परंतु शंकाग्रस्त है
जो ठान ले यदि लक्ष्य को, तो सूर्य भी नतमस्तक है।
एक दीया उस हनुमान की स्तुति में।
एक दीया उस लंकेश की स्मृति में भी
जो वेदों का ज्ञाता था, प्रकांड पंडित था,
जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश के वरदानों से मंडित था,
जो प्रतापी था, तपस्वी था, पर
नियति पटल पर खंडित था।
जो सर्वनाशी था, प्रकोपी था, जो प्रभु राम के बाण से रूंडित था,
एक दीया उस लंकेश की स्मृति में।
अंततोगत्वा,
एक दीया मानवता के उद्धार के लिए,
एक दीया प्रकृति के पुनः विस्तार के लिए,
एक दीया आत्म-साक्षात्कार के लिए,
एक दिया रामायण व वाल्मीकि द्वारा प्रदत्त संस्कार के लिए,
एवं एक दीया आप सभी के द्वार के लिए।
दीपोत्सव की आपको व आपके स्वजनों को हार्दिक शुभकामनाएं।
जय श्री राम!
🪔 पुलकित उपाध्याय 🪔
Monday, 20 July 2020
उदासी
Wednesday, 24 June 2020
'A Confession'
Tuesday, 9 June 2020
' सब अपने घर में हैं '
प्रकृति अपने भंवर में हैं।
नदियाँ घाटियों के उदर में हैं।
पर्वत आसमानों के अधर में हैं।
हवाएँ बादलों के पर में हैं।
अग्नि हर कंकर में है।
सब अपने घर में हैं।
पक्षी अपने सफर में है।
ख़ामोशी हर एक पहर में है।
उदासी हर बसर में है।
मानव अब कहर में है।
काल फिर से सहर में है।
सब अपने घर में है।
सेठ अपने बिस्तर में है।
मजदूर अपने मुक़द्दर में है।
राजनीति अपने चौसर में है।
मानवीयता अपने कनस्तर में है।
समाज अपने डर में है।
सब अपने घर में है।
संक्रमण अत्यंत तीव्र में है।
तीव्र स्वयं शीघ्र में है।
नज़रें हर दम फिक्र में हैं।
खतरा हर एक ज़िक्र में है।
जीवन सिर्फ हिज्र में है।
सब अपने घर में हैं।
Sunday, 16 February 2020
एक दौर
एक दौर को उजाड़ कर एक दौर में ठहर गया।
वो आसमान से गहरा और दिशाओं से चौड़ा था।
वो हवाओं से तीव्र और सूरज का सातवाँ घोड़ा था।
वो जीवन से परे समय का एक खेल था।
वो काल की चौखट पर नियति का मेल था।
वो सन्नाटों की आहट में जीवन की बसावट था।
वो विलक्षण ही रातों में उजालों की लिखावट था।
वो आत्मा में जीवन का अदृश्य प्रसार था।
वो ईश्वर के साक्षात्कार का चित्त में प्रचार था।
वो क्षण का क्षण पर समरूप घर्षण था।
वो कण का कण से अद्वितीय आकर्षण था।
वो न जाने क्यों भौतिकता की बेड़ियों में कैद हो गया।
वो लक्ष्य से फिसल कर कपालिका वेद हो गया।
वो हारकर जीता और जीतकर हार गया।
हार को जीतकर तत्काल ही स्वीकार गया।
सँवर कर,संभल कर वो कुछ उस दौर में बिखर गया...
एक दौर की तलाश में एक दौर से गुज़र गया।
एक दौर को उजाड़ कर एक दौर में ठहर गया।
Friday, 11 October 2019
गज़ल :- ' भूल गए '
तो पेड़ों पर ही झूल गए।
कुछ कलियाँ क्या खिली बाग में
वो पतझड़ के दिन भूल गए।
हमारी अठखेलियों को खेल समझने वाले,
तेरी जवानी के दिन फ़िज़ूल गए।
वक़्त की तहें मुझे इंसान बनाती रहीं,
हर तरक्की के लम्हे मेरे उसूल गए।
देश में मंदी का हवाला देते देते,
वो उस बूढ़े किसान से सारी खेती वसूल गए।
प्लास्टिक/रबड़ की गेंदों को अपनी रूह से जकड़ने वाले,
मैदान की उस डोली के सारे बबूल गए।
दीवारों को ताउम्र हिफाज़त का हवाला देने वाले
कुछ दरवाज़े बारिशों में फूल गए।
और हमको तुम अपनी वफाओं में सजा के रखना,
फ़िर ना कहना की हम बुलंदियों पर तुम्हे भूल गए।