सब अपने घर में हैं।
प्रकृति अपने भंवर में हैं।
नदियाँ घाटियों के उदर में हैं।
पर्वत आसमानों के अधर में हैं।
हवाएँ बादलों के पर में हैं।
अग्नि हर कंकर में है।
सब अपने घर में हैं।
पक्षी अपने सफर में है।
ख़ामोशी हर एक पहर में है।
उदासी हर बसर में है।
मानव अब कहर में है।
काल फिर से सहर में है।
सब अपने घर में है।
सेठ अपने बिस्तर में है।
मजदूर अपने मुक़द्दर में है।
राजनीति अपने चौसर में है।
मानवीयता अपने कनस्तर में है।
समाज अपने डर में है।
सब अपने घर में है।
संक्रमण अत्यंत तीव्र में है।
तीव्र स्वयं शीघ्र में है।
नज़रें हर दम फिक्र में हैं।
खतरा हर एक ज़िक्र में है।
जीवन सिर्फ हिज्र में है।
सब अपने घर में हैं।
प्रकृति अपने भंवर में हैं।
नदियाँ घाटियों के उदर में हैं।
पर्वत आसमानों के अधर में हैं।
हवाएँ बादलों के पर में हैं।
अग्नि हर कंकर में है।
सब अपने घर में हैं।
पक्षी अपने सफर में है।
ख़ामोशी हर एक पहर में है।
उदासी हर बसर में है।
मानव अब कहर में है।
काल फिर से सहर में है।
सब अपने घर में है।
सेठ अपने बिस्तर में है।
मजदूर अपने मुक़द्दर में है।
राजनीति अपने चौसर में है।
मानवीयता अपने कनस्तर में है।
समाज अपने डर में है।
सब अपने घर में है।
संक्रमण अत्यंत तीव्र में है।
तीव्र स्वयं शीघ्र में है।
नज़रें हर दम फिक्र में हैं।
खतरा हर एक ज़िक्र में है।
जीवन सिर्फ हिज्र में है।
सब अपने घर में हैं।
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