एक दीया उस राम के नाम जो व्याप्त है कण-कण में,
जो विद्यमान है हर क्षण में,
जो बैठा है हर रण में,
जो बसता है हमारे अंतःकरण में
एक दीया उस राम के नाम।
एक दीया उस लक्ष्मण के लिए जिसने त्याग दिया राजभवन को,
आनंद विलास और राज धन को,
जो भ्राता संग भटकता रहा सघन वन को,
जिसने मजबूत किया राम के मन को,
एक दीया उस लक्ष्मण के लिए।
एक दीया उस सीता को अर्पित जो आदर्श और समर्पण की मूरत है,
जो हर संघर्ष में सहजता की सूरत है,
जो मर्यादा पुरूषोत्तम के जीवन की जरूरत है,
जो मां है, जननी है, कुदरत है,
एक दीया उस सीता को अर्पित।
एक दीया उस हनुमान की स्तुति में
जो चंचल है, स्वामिभक्त है,
जो पुष्प सा कोमल है, पर्वत सा सख्त है,
जो सर्वशक्तिशाली है, परंतु शंकाग्रस्त है
जो ठान ले यदि लक्ष्य को, तो सूर्य भी नतमस्तक है।
एक दीया उस हनुमान की स्तुति में।
एक दीया उस लंकेश की स्मृति में भी
जो वेदों का ज्ञाता था, प्रकांड पंडित था,
जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश के वरदानों से मंडित था,
जो प्रतापी था, तपस्वी था, पर
नियति पटल पर खंडित था।
जो सर्वनाशी था, प्रकोपी था, जो प्रभु राम के बाण से रूंडित था,
एक दीया उस लंकेश की स्मृति में।
अंततोगत्वा,
एक दीया मानवता के उद्धार के लिए,
एक दीया प्रकृति के पुनः विस्तार के लिए,
एक दीया आत्म-साक्षात्कार के लिए,
एक दिया रामायण व वाल्मीकि द्वारा प्रदत्त संस्कार के लिए,
एवं एक दीया आप सभी के द्वार के लिए।
दीपोत्सव की आपको व आपके स्वजनों को हार्दिक शुभकामनाएं।
जय श्री राम!
🪔 पुलकित उपाध्याय 🪔
No comments:
Post a Comment