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Sunday, 16 February 2020

एक दौर

एक दौर की तलाश में एक दौर से गुज़र गया।
एक दौर को उजाड़ कर एक दौर में ठहर गया।

वो आसमान से गहरा और दिशाओं से चौड़ा था।
वो हवाओं से तीव्र और सूरज का सातवाँ घोड़ा था।

वो जीवन से परे समय का एक खेल था।
वो काल की चौखट पर नियति का मेल था।

वो सन्नाटों की आहट में जीवन की बसावट था।
वो विलक्षण ही रातों में उजालों की लिखावट था।

वो आत्मा में जीवन का अदृश्य प्रसार था।
वो ईश्वर के साक्षात्कार का चित्त में प्रचार था।

वो क्षण का क्षण पर समरूप घर्षण था।
वो कण का कण से अद्वितीय आकर्षण था।

वो न जाने क्यों भौतिकता की बेड़ियों में कैद हो गया।
वो लक्ष्य से फिसल कर कपालिका वेद हो गया।

वो हारकर जीता और जीतकर हार गया।
हार को जीतकर तत्काल ही स्वीकार गया।

सँवर कर,संभल कर वो कुछ उस दौर में बिखर गया...

एक दौर की तलाश में एक दौर से गुज़र गया।
एक दौर को उजाड़ कर एक दौर में ठहर गया।

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