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Thursday, 10 July 2025

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर समस्त गुरुजनों को नमन। मैंने अपने हृदय के उद्गारों को अपनी एक कविता के माध्यम से व्यक्त किया है।


                             शीर्षक: गुरु


गर्भ से रुद्र की रूक्ष यात्रा का रम्य तत्व होता है गुरु।
गृह से संन्यास के दुर्गम मार्गों में एकमात्र सत्व होता है गुरु।

गुरु जीवन है, ज्ञान है, प्रकाश है। 
गुरु आस्था है, समर्पण है, विश्वास है।

गुरु मित्र है, मंत्र है, जीवन को जागृत रखने वाला तंत्र है।
गुरु विचार है, व्यवस्था है, अंतःकरण में निहित गणतंत्र है। 

गुरु प्रेम है, सद्भाव है, मां की कोमल गोद है।
गुरु प्रशासन है, अनुशासन है, पिता का प्रज्वलित क्रोध है।

गुरु प्रारब्ध है, समय है, सहचर है।
गुरु शून्य है, तन्य है, अगोचर है। 

गुरु प्रकृति है, श्वास है, सृष्टि है।
गुरु अद्वैत है, आध्यात्म है, अलौकिक दृष्टि है।

गुरु वायु है, अग्नि है, नभ है।
गुरु पृथ्वी है, जल है, सबब है। 

गुरु बुद्धि है, मन है, आत्मचिंतन है।
गुरु शोध है, शुद्धि है, शमन है।

जीवन में जीवन से परे जी का द्रव्य होता है।
गर्भ से रुद्र की रूक्ष यात्रा का रम्य तत्व होता है गुरु।