My photo
Freelance Journalist, Mechanical Engineer, Writer, Poet, Thinker, Creator of Naya Hindustan (Youtube)

Monday, 20 October 2025

एक दीया...

एक दीया उस राम के नाम जो व्याप्त है कण-कण में,

जो विद्यमान है हर क्षण में, 

जो बैठा है हर रण में,  

जो बसता है हमारे अंतःकरण में

एक दीया उस राम के नाम।



एक दीया उस लक्ष्मण के लिए जिसने त्याग दिया राजभवन को,

आनंद विलास और राज धन को,

जो भ्राता संग भटकता रहा सघन वन को,

जिसने मजबूत किया राम के मन को,

एक दीया उस लक्ष्मण के लिए।



एक दीया उस सीता को अर्पित जो आदर्श और समर्पण की मूरत है,

जो हर संघर्ष में सहजता की सूरत है,

जो मर्यादा पुरूषोत्तम के जीवन की जरूरत है,

जो मां है, जननी है, कुदरत है,

एक दीया उस सीता को अर्पित।



एक दीया उस हनुमान की स्तुति में 

जो चंचल है, स्वामिभक्त है,

जो पुष्प सा कोमल है, पर्वत सा सख्त है,

जो सर्वशक्तिशाली है, परंतु शंकाग्रस्त है

जो ठान ले यदि लक्ष्य को, तो सूर्य भी नतमस्तक है।

एक दीया उस हनुमान की स्तुति में।





एक दीया उस लंकेश की स्मृति में भी

जो वेदों का ज्ञाता था, प्रकांड पंडित था,

जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश के वरदानों से मंडित था,

जो प्रतापी था, तपस्वी था, पर

नियति पटल पर खंडित था।

जो सर्वनाशी था, प्रकोपी था, जो प्रभु राम के बाण से रूंडित था,

एक दीया उस लंकेश की स्मृति में।



अंततोगत्वा,

एक दीया मानवता के उद्धार के लिए,

एक दीया प्रकृति के पुनः विस्तार के लिए,

एक दीया आत्म-साक्षात्कार के लिए,

एक दिया रामायण व वाल्मीकि द्वारा प्रदत्त संस्कार के लिए, 

एवं एक दीया आप सभी के द्वार के लिए।



दीपोत्सव की आपको व आपके स्वजनों को हार्दिक शुभकामनाएं।



जय श्री राम!

                    🪔 पुलकित उपाध्याय 🪔

Thursday, 10 July 2025

गुरु

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर समस्त गुरुजनों को नमन। मैंने अपने हृदय के उद्गारों को अपनी एक कविता के माध्यम से व्यक्त किया है।


                             शीर्षक: गुरु


गर्भ से रुद्र की रूक्ष यात्रा का रम्य तत्व होता है गुरु।
गृह से संन्यास के दुर्गम मार्गों में एकमात्र सत्व होता है गुरु।

गुरु जीवन है, ज्ञान है, प्रकाश है। 
गुरु आस्था है, समर्पण है, विश्वास है।

गुरु मित्र है, मंत्र है, जीवन को जागृत रखने वाला तंत्र है।
गुरु विचार है, व्यवस्था है, अंतःकरण में निहित गणतंत्र है। 

गुरु प्रेम है, सद्भाव है, मां की कोमल गोद है।
गुरु प्रशासन है, अनुशासन है, पिता का प्रज्वलित क्रोध है।

गुरु प्रारब्ध है, समय है, सहचर है।
गुरु शून्य है, तन्य है, अगोचर है। 

गुरु प्रकृति है, श्वास है, सृष्टि है।
गुरु अद्वैत है, आध्यात्म है, अलौकिक दृष्टि है।

गुरु वायु है, अग्नि है, नभ है।
गुरु पृथ्वी है, जल है, सबब है। 

गुरु बुद्धि है, मन है, आत्मचिंतन है।
गुरु शोध है, शुद्धि है, शमन है।

जीवन में जीवन से परे जी का द्रव्य होता है।
गर्भ से रुद्र की रूक्ष यात्रा का रम्य तत्व होता है गुरु।

Monday, 3 February 2025

शीर्षक: निद्रा की खोज

जीवन के संघर्षों में,
अवसादित सिंचित वर्षों में,
क्षणभंगुर उन्मादित हर्षों में,
निष्कर्ष खोजते निष्कर्षों में, 
खो गई है निद्रा।

सामाजिक–पारिवारिक बवालों में,
स्वयं के स्वयं से सवालों में,
प्रेयसी के मूर्छित ख्यालों में,
नियति के निष्ठुर निवालों में,
कहीं खो गई है निद्रा।

राजनैतिक–वैज्ञानिक चिंतन में,
आत्मिक–आध्यात्मिक मंथन में,
वैयक्तिक–चारित्रिक स्कंदन में,
नैतिक–भौतिक क्रंदन में,
गुम हो गई है निद्रा।

स्वप्नों की अखंड अग्नि में,
एकांत की शांत ध्वनि में,
यौवन की प्रस्फुटित रवानी में,
शून्य से शून्य तक की कहानी में,
शायद, स्वयं ही सो गई है निद्रा।

       पुलकित उपाध्याय