मेरी सोच एक दम खरी थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
आँखें तुम्हारी मदभरी थी।
वो घटाएँ बड़ी गहरी थी।
निगाहें जब तुमने मेरी निगाहों पर धरी थी।
ऋतुएँ बहकते हुए इक क्षण में ठहरी थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
मेरी सोच एक दम खरी थी।
उन तमाम चेहरों में से एक चेहरा तुम्हारा।
फूलों ने मुस्कुराते हुए उस वक़्त को गुज़ारा।
दुनियाँ के चेहरों से अनजान,
लोगों की फ़ितरत से नादान
तुम्हारी कल्पनायें मेरा जहान।
वो अल्हड़, मदहोश,आवारा उम्र की मियाद बस पल भर ही थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
मेरी सोच 100 फीसद खरी थी।
जिस शाम तुमने मुझे पहली दफा घूरा था।
मेरा निर्माण तब अधूरा था।
मैं मृग की भाँति सहमा,
कस्तूरी के आवेश में झूमा।
हर दिशा भटका,
क़दमों को हर छोर तक पटका।
जीवन से हारकर,खुद को जीता।
ये बात में किसको कहता,
कस्तूरी तो अंततः हिरण की नाभि में भरी थी।
मेरी सोच एक दम खरी थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
आँखें तुम्हारी मदभरी थी।
वो घटाएँ बड़ी गहरी थी।
निगाहें जब तुमने मेरी निगाहों पर धरी थी।
ऋतुएँ बहकते हुए इक क्षण में ठहरी थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
मेरी सोच एक दम खरी थी।
उन तमाम चेहरों में से एक चेहरा तुम्हारा।
फूलों ने मुस्कुराते हुए उस वक़्त को गुज़ारा।
दुनियाँ के चेहरों से अनजान,
लोगों की फ़ितरत से नादान
तुम्हारी कल्पनायें मेरा जहान।
वो अल्हड़, मदहोश,आवारा उम्र की मियाद बस पल भर ही थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।
मेरी सोच 100 फीसद खरी थी।
जिस शाम तुमने मुझे पहली दफा घूरा था।
मेरा निर्माण तब अधूरा था।
मैं मृग की भाँति सहमा,
कस्तूरी के आवेश में झूमा।
हर दिशा भटका,
क़दमों को हर छोर तक पटका।
जीवन से हारकर,खुद को जीता।
ये बात में किसको कहता,
कस्तूरी तो अंततः हिरण की नाभि में भरी थी।
मेरी सोच एक दम खरी थी।
तुम इतनी भी बुरी नही थी।