बारिशें जो घुसी गांव में,
तो पेड़ों पर ही झूल गए।
कुछ कलियाँ क्या खिली बाग में
वो पतझड़ के दिन भूल गए।
हमारी अठखेलियों को खेल समझने वाले,
तेरी जवानी के दिन फ़िज़ूल गए।
वक़्त की तहें मुझे इंसान बनाती रहीं,
हर तरक्की के लम्हे मेरे उसूल गए।
देश में मंदी का हवाला देते देते,
वो उस बूढ़े किसान से सारी खेती वसूल गए।
प्लास्टिक/रबड़ की गेंदों को अपनी रूह से जकड़ने वाले,
मैदान की उस डोली के सारे बबूल गए।
दीवारों को ताउम्र हिफाज़त का हवाला देने वाले
कुछ दरवाज़े बारिशों में फूल गए।
और हमको तुम अपनी वफाओं में सजा के रखना,
फ़िर ना कहना की हम बुलंदियों पर तुम्हे भूल गए।
तो पेड़ों पर ही झूल गए।
कुछ कलियाँ क्या खिली बाग में
वो पतझड़ के दिन भूल गए।
हमारी अठखेलियों को खेल समझने वाले,
तेरी जवानी के दिन फ़िज़ूल गए।
वक़्त की तहें मुझे इंसान बनाती रहीं,
हर तरक्की के लम्हे मेरे उसूल गए।
देश में मंदी का हवाला देते देते,
वो उस बूढ़े किसान से सारी खेती वसूल गए।
प्लास्टिक/रबड़ की गेंदों को अपनी रूह से जकड़ने वाले,
मैदान की उस डोली के सारे बबूल गए।
दीवारों को ताउम्र हिफाज़त का हवाला देने वाले
कुछ दरवाज़े बारिशों में फूल गए।
और हमको तुम अपनी वफाओं में सजा के रखना,
फ़िर ना कहना की हम बुलंदियों पर तुम्हे भूल गए।